श्री गुरु अर्जुन देव जी के शब्द, भाई मनिन्दर सिंह की प्रस्तुति
अपने सेवक की आपै राखै, आपै नाम जपावै
जेह जेह काज किरत सेवक के, तहाँ तहाँ उठ धावै
सेवक कौ निकटी होय दिखावै
जो जो कहै ठाकुर पै सेवक, तत्काल हुइ जावै
तिस सेवक के हो बलिहारी, जो अपने प्रभु भावै
तिस की सोए सुनि मन हरया, नानक प्रसन्न आवै
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2 टिप्पणियां:
bahut hi sundar prastuti ||
बहुत सुंदर और भक्तिमयी प्रस्तुति॥
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