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सोमवार, 5 सितंबर 2011

सेवक कौ निकटी होय दिखावै

श्री गुरु अर्जुन देव जी के शब्द, भाई मनिन्दर सिंह की प्रस्तुति


अपने सेवक की आपै राखै, आपै नाम जपावै
जेह जेह काज किरत सेवक के, तहाँ तहाँ उठ धावै
सेवक कौ निकटी होय दिखावै
जो जो कहै ठाकुर पै सेवक, तत्काल हुइ जावै
तिस सेवक के हो बलिहारी, जो अपने प्रभु भावै
तिस की सोए सुनि मन हरया, नानक प्रसन्न आवै

2 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

bahut hi sundar prastuti ||

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुंदर और भक्तिमयी प्रस्तुति॥

कुछ अलग सा Something Different

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