अपने आप में अलग तरह की मराठी फ़िल्म "काक स्पर्श" की सुन्दर समीक्षा श्री सतीश पंचम के हिन्दी ब्लॉग सफ़ेद घर पर पढी जा सकती है।
एक बूढ़ी विधवा गाँव के नाई को बुला लाती है ताकि उमा के सिर के बाल काटे जांय, उसे विधवारूप दिया जाय, लेकिन हरी अड़ जाता है कि उमा के बाल नहीं काटे जायेंगे वह जैसे रहना चाहे रह सकती है. लोग तरह तरह के आरोप लगाते हैं कि हरी हमेशा धर्म के विरूद्ध जाता है, मंदिर में भी बलि प्रथा का विरोध किया यह उसी का कुफल है लेकिन हरि किसी की नहीं सुनता और उमा का पक्ष लेता है. घर में पूजा-पाठ के दौरान बूढ़ी विधवा अत्या चाहती है कि उमा घर में पूजा-पाठ में न रहे, उसके हाथ का पानी ईश्वर को नहीं चलेगा लेकिन यहां भी हरि अड़ जाता है कि ईश्वर की पूजा उमा ही करेगी. हरी की पत्नी तारा को अपने पति द्वारा उमा का इतना ज्यादा पक्ष लेना अजीब लगता है. धीरे-धीरे उसे शक होने लगता है कि कहीं उसके पति उमा पर आसक्त तो नहीं. उधर उमा अपने जेठ हरि द्वारा जताई गई सहानुभूति से अभिभूत होती है. उसे लगने लगता है कि इस घर में उसकी देख-रेख करने वाला कोई तो है.
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काकस्पर्श: चित्र सफ़ेद घर से साभार |
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1 टिप्पणी:
kupirtha par choat ki ha, acha laga. ajad desh me aaj bi kai state me ye ho raha h.
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