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बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

जाग के काटी सारी रैना, नयनों में कल ओस गिरी थी (लीला)

प्रेम की अग्नि बुझती नहीं है, बहती नदिया रुकती नहीं है

मेरे प्रिय गीतों में से एक और - जगजीत सिंह के स्वर में

1 टिप्पणी:

इन्दु पुरी ने कहा…

jaag ke kaati saari raina,naino me kl os giri thi' bahut pyari gazal hai yh. sun rhi hun ek baar fir.

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