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शनिवार, 17 मार्च 2012

जले तो जलाओ गोरी - इब्न-ए-इंशा - नय्यारा नूर

प्रीत में बियोग भी है, कामना का सोग भी है
प्रीत बुरा रोग भी है, लगे तो लगाओ ना
रात को उदास देखें, चाँद को निराश देखें,
तुम्हें जो न पास देखें, आओ पास आओ न!
~इब्न-ए-इंशा

पुरातन पोस्ट पत्रावली

7 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

Nice

संगीता पुरी ने कहा…

बढिया है ..

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत खूब..................

Dr (Miss) Sharad Singh ने कहा…

सुमधुर प्रस्तुति ...

नीरज गोस्वामी ने कहा…

आज आपके ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद आना हुआ. अल्प कालीन व्यस्तता के चलते मैं चाह कर भी आपकी रचनाएँ नहीं पढ़ पाया. व्यस्तता अभी बनी हुई है लेकिन मात्रा कम हो गयी है...:-)

लाजवाब कर दिया.

बधाई स्वीकारें

नीरज

SKT ने कहा…

पढ़ी तो थी, सोचा भी नहीं था कि इसे गाया भी जा सकता है. चमत्कृत कर दिया!

SKT ने कहा…

पढ़ी तो थी, सोचा भी नहीं था कि इसे गाया भी जा सकता है. चमत्कृत कर दिया!

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