फ़ॉलोअर

मंगलवार, 14 जून 2011

हम रात बहुत रोये - 15 जून

कूंचे को तेरे छोड़ कर, जोगी ही बन जाएँ मगर!
जंगल तेरे, परबत तेरे, बस्ती तेरी, इंशा तेरा ॥

कवि इब्न ए इंशा के जन्मदिन पर उनकी एक मर्मस्पर्शी कविता का एक अंश
- अम्मार अली खाँ के स्वर में

हम रात बहुत रोये, बहुत आहो-फ़ुग़ाँ की
दिल दर्द से बोझिल हो तो फिर नींद कहाँ की

अल्लाह करे मीर का जन्नत में मकाँ हो
मरहूम ने हर बात हमारी ही बयाँ की


=================================
सम्बंधित कड़ियाँ
=================================
* सब माया है - सलमान अलवी
* इब्न ए इंशा के जन्मदिन पर - पिट औडियो
* कल चौदहवीं की रात थी - जगजीत सिंह
* यह बच्चा कैसा बच्चा है
* इब्न-ए-इंशा - कविता कोश

पुरातन पोस्ट पत्रावली

3 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

जंगल तेरे, परबत तेरे, बस्ती तेरी, इंशा तेरा ॥ मस्त-मस्त गीतों की ये श्रृंखला ||
आभार ||

निर्मला कपिला ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति। आभार

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत ख़ूबसूरत प्रस्तुति..

ब्लॉग निर्देशिका - Blog Directory

हिन्दी ब्लॉग - Hindi Blog Aggregator

Indian Blogs in English अंग्रेज़ी ब्लॉग्स